Skip to main content

तेरी आज की मेहनत ही तेरी कल की सफलता का राज हैं।


जिस हिम्मत से तूने कदम बढ़ाया है,
मुश्किलों से लड़ने का जो तूने हौसला खुद में जगाया है,
देख उस खुदा ने भी कितनी शिद्दत से,
तेरे रास्तों के कांटों को हटाया है,
तुझे रास्ता दिखाया है।

जिस सपनों को तूने सजाया है,
जिन को पूरा करने के लिए तूने दिन-रात खुद को जगाया है,
हो रहा असफल फिर भी उसे पाने के लिए जी जान तूने लगाया है,
मिलेगा वह पद भी तुझे जरूर,
क्योंकि उस रब ने मेहनत को सबसे ऊपर बताया है।

जिस चीज को पाने के लिए तूने अपना सब कुछ गंवाया है,
जिसके लिए तूने हर चोट को अपनाया है,
एक दिन जीत तेरी भी जरूर होगी,
क्योंकि तू हार से ना कभी घबराया है,
ना कभी मैदान छोड़कर भाग आया है।

जिस मुसीबत से डरा नहीं तू,
Add caption


किस्मत के सामने झुका नहीं तू,
उसकी तो मंजिल भी मोहताज है,
कदम बढ़ा तू क्योंकि,
सजेगा जरूर एक दिन तेरे सर पे भी ताज है,
आज की मेहनत तेरी कल की खुशियों का राज है।

जिस यकीन से तूने मंजिलों को पाने की कोशिश की है,
उस यकीन से ही तेरी किस्मत भी झुकी है,
साबित कर देगी तेरी मेहनत भी,
एक दिन सबको की मेहनत के सामने सारी दुनिया झुकी है।

"अगर जिद तेरी पक्की है,
तेरे सपने को पाने की,
औकात नहीं किसी की भी,
तुझे रोक पाने की।"

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Ahead towards independence

  बस जगह-जगह क्रांतिकारियों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें  नोट पे बापू की फोटो,लाल गेट पर तिरंगा  विद्यालयों में विंध्य हिमाचल यमुना गंगा  सरकारी दफ्तरों में देशभक्तों की तस्वीरो से दीवारों को रंगा  क्या इतनी सी आजादी काफी है ?  क्या सिर्फ इतनी सी आजादी के लिए  रानी लक्ष्मीबाई ने तलवार उठाई थी  क्या केवल इन्हीं लम्हों के लिए मंगल पांडे ने फांसी खाई थी  इसी पल के लिए क्या तात्या टोपे और नाना साहेब ने वफादारी निभाई थी ? केवल सिर्फ इतनी सी आजादी के लिए  कंपनी बाग से कोर्ट में वो जनेऊ धारी लड़ गया था  और वह 23 साल का सरदार रंग दे बसंती गा के फांसी चढ़ गया था ? क्या सिर्फ डेढ गज कपड़े के लिए  नेता जी ने हिटलर को आंख दिखाई थी  और क्या बापू ने सिर्फ नोटों पर छपने के लिए बंदूक सीने पे खाई थी ? क्या केवल आत्मकथाओं के पन्ने भरने के लिए  नेहरू जी ने सालों जेलों में बिताई थी  और लाखों क्या केवल इतिहास के पन्नों की भूख को सालों जेलों की हवा खाई थी  और अंत में प्राणों की बाजी खुशी-खुशी अपने वतन के लिए लगाई थी ? आजादी वो है जब पैर...

वो बचपन फिर से याद आया

  चलते-चलते आज मैंने भी फिर से वो गीत गुनगुनाए अपने ही बचपन के नादान किस्से याद कर मन ही मन मुस्कुराए आज बचपन के वो मजेदार दिन फिर से याद आए । काश! वो दिन फिर से लौट आए  ऐसी उम्मीद हम सब लगाए  पानी में वह कागज की कश्ती दौड़ाए  खुले आसमान में बेखौफ पतंग उड़ाए  एक छत से दूसरे छत ऐसे कितने छतो को हम छू आए  बचपन के वो किस्से आज फिर याद आए । वो डांट से बचने के लिए दादा-दादी के पास चले जाना देर रात तक किस्से कहानियों का वो उनको सुनाना हर-पल याद आता है वो प्यार से माँ का लोरी गाना आज हो गया बचपन का हर किस्सा पुराना । उस पल बेखौफ जिंदगी का लुप्त उठाना  बात-बात पर रूठना मनाना  कभी डरना भूतों से कभी भूत बनकर दूसरों को डराना  शोर-गुल के साथ खेलना नाचना गाना  सब कुछ मानो खुला बाजार था  बचपन का हर किस्सा यादगार था  हर लम्हा बड़ा मजेदार था । दिल में ख्वाहिशों का लगा अंबार था  हर दुकान में कुछ ना कुछ पसंद आ जाता मुझे हर बार था  मेरी हर छोटी ख्वाहिश को पूरा करने में लगा मेरा पूरा परिवार था  उस वक्त अपनों में कुछ अनूठा प्यार था...

माँ मुझे भी उड़ जाने दो ।

 तेरे आँगन की चिड़िया हु ना माँ, तो मुझे भी खुले आसमा में उड़ जाने दो, मुझे भी खुलकर पंख फेलाने दो, तेरे आँगन की गुड़िया हु न माँ, तो मुझे भी मन पसंद के खिलोनो से खेल जाने दो ।   क्यों भवरों को ही छुट दे रखी हैं माँ ,मन चाहे फूलों पर मँडराने की, में भी तो तितली हु तेरे आँगन की मुझे भी छूट दे दो मनछाए फूलों पर मँडराने की उड़ कर महक बरसाने की।  उड़ रहे हैं माँ सब खुले आस्मा में क्यों पंख मेरे बाँधे हुए हैं? मन मेरा भी चाहता हैं नील गगन में उड़ जाने को खुले अस्मा में पंख फैलने को आज़ादी के एहसास को महसुस कर जाने को।  खुले दरवाजे सबके लिए यहाँ माँ क्यों खिड़की से में झाकु? बंद हैं यहाँ मेरा पिंजरा माँ कैसे यहाँ से में नील गगन की औऱ झाकु? कैसे उड़ने के लिए अपने पँखो को आकू। शेरनी हु ना माँ में तेरे आँगन की तो क्यों बिल्ली बनकर औरो के पिछे भागु क्यों हर बार दूसरों के लिए में ही अपना सबकुछ त्यागू मुझे भी हक़ हैं खुलकर जीने का क्यों बन्द गुफा से में झाकु?  एक मौका मुझे भी दो माँ मुझे भी उड़ जाने दो अपनी पसंद से जी जाने दो अस्मा को चूम आने दो अंतरिक्ष पर कदम बढ़ाने दो मैं भी सबकुछ क...