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जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन कही खो गया परिवर्तन ये बड़ा अजीब हो गया ।
वो बारिश के मौसम में कागज की कश्ती तैराना, वो बारिश के पानी में दोस्तो संग नाचना-गाना,वो रेत के टीलों पर अपना-अपना घर बनाना, शोर -गुल के साथ गिल्ली-डंडा उड़ाना,वो बात बात पर रूठना-मनाना सब न जाने कही सो गया ,जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन कही खो गया।
वो दादी-नानी की कहानियां सारी- सारी रात सुनना ,वो परियो और भूतों में बेहतरीन यकीन करना, वो छत पर सोते हुए अस्मा में यु तेरे गिनना ना जाने कहाँ खो गया ,जिंदगी की रेस मैं बच्चों का बचपन कही सो गया।
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वो बचपन मे माँ का लोरी सुनाना, पिता का प्यार से कंधे पर बिठाना ,वो माता-पिता का बच्चों के साथ दोस्तों की तरह खेलते,नाचते,गाना हस्ते हँसाते उनको पढना ना जाने कहा खो गया जिन्दगी की रेस मैं बच्चों का बचपन कही खो गया।
वो गलती करने पर मासूम सी शक्ल बनाना डाट से बचने के लिए आँसू बहाना, भरपूर नोटंकी दिखा-दिखा कर सबका दिल बहलाना,वो रोज नए सपने देख सबको बताना, हँसना-रोना तो कभी बड़ा सा मुँह फूलना सच मे बड़ा यादगार था, बचपन का हर किस्सा अब कही खो ,गया जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन कही सो गया।
वक़्त के साथ परिवर्तन ये अजीब हो गया बच्चों के हाथों में से खिलौना कही खो गया ,बच्चों का खुशियो वाला रविवार अब आता नही ,नन्हें-नन्हें हाथों से विडियो गेम्स और इनटरनेट का कनेक्शन अब दुर जाता नही, मैदानों में अब वो शोर नजर आता नही ,बारिशों में भी अब उतना मज़ा आता नही क्युकी अब बच्चों में वो बचपना नजर आता नही।
छोटे-छोटे कंधो पर अब बस्ते का बोझ इतना हो गया ,रात के अंधेरे में भी बच्चा किताबों में खो गया कब चाँद और सूरज सब उसके लिए एक हो गया, अपने ही सपनो में ना जाने अब बच्चों का बचपन कही खो गया परिवर्तन ये बड़ा गजब हो गया जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन भी ढलते सूरज की तरह कही ओझल सा हो गया ।
जिंदगी की रेस में बच्चों का बचपन कही खो गया।।।।।।।
Bhaut sundar poem hai ......bachapan ki vo sari yade ko Apne puri tarah se Yaadgar bana diya ....👌👌👌👌
ReplyDelete👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteVery true ❣
ReplyDeletebhut aacha likha hai aapne
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteOutstanding
ReplyDeleteLovely
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteBeautiful thought😊😊
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