तबाही का मंजर देख तेरा इंसान घबरा रहा है यू अंधेरा चारों और छा रहा है सूरज उगे बिना ही ढलता जा रहा है यह कैसा अजीब दौर नजर आ रहा है तेरा इंसान बिन मौत ही मारा जा रहा है। हाँ माना खुदा तू अपनी नाराजगी जता रहा है हमारे ही कर्मों की सजा हमें ही सुना रहा है हर चीज की कीमत अब हमें समझा रहा है अब रहम कर तेरा इंसान एक-एक साँस को तरसता जा रहा है। तेरे सामने यू लाशो का ढेर लगता जा रहा है क्या हस्ती और क्या बस्ती यह तो चारों तरफ फैला जा रहा है तेरा इंसान अंधेरे की और धकेला जा रहा है वो अपनी गलतियों को समझ पा रहा है वो यकीनन पछता रहा है मगर अब बस भी कर ऐ खुदा यहाँ हर परिवार बिखरता जा रहा है तेरा इंसान अब लड़खड़ा रहा हैं। वो हिम्मत हारता जा रहा है वो अकेला पड़ता जा रहा है तेरे सामने सर झुका रहा है माफिया माँग अपनी गलतियों की तुझसे उम्मीद दया की लगा रहा है अब रहम कर तेरा इंसान तरसता जा रहा है। हाँ हुई गलतियां हमसे तो माफ करना भी तो तेरा काम है क्यों रूठ गया इतना हमसे कि हमारा तुझे म...
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