कभी-कभी मेरा मन भी विचलित हो जाता, प्रश्नों का भंडार खड़ा हो जाता , क्यों होती बेटी की विदाई , क्यों सहनी पड़ती उसको अपनों से जुदाई , क्यों हर बार चोट उसको ही लगाई ? अपनी खुशियों को छोड़ , क्यों उसे दूसरों की खुशियां थमाई , बजा के तूने शहनाई , बड़े दुख से कर दी उसकी विदाई , वह पूछती रह गई , पर किसी के मुंह से आवाज ना आई । ऐसे अजीब रिवाजों को देख बेटी सेहमाई , पर सब की मर्जी और रिवाजों के आगे , वह भी कुछ ना कर पाई , भरी आंखों से नर्म होठों से , उसके भी मन मै एक आवाज आई , बेटी कह के भी कर दी पराई । जननी और उसकी जान की होती यह कैसी जुदाई , जिसको देख कर हर किसी की आंख भर आई , सीने से लगाकर बड़े प्यार से रोते हुए , क्यों कर दी सब ने अपनी बेटी की विदाई , यह सब देख बेटी को बहुत रोना आया , पर उसके प्रश्नों का उत्तर आज तक कोई नहीं दे पाया । पर फिर भी बेटी ने अपना सारा फर्ज निभाया , एक ही नहीं बल्कि दो परिवारों को सजाया , सब में प्रेम जगाया हर रिश्ते को बखूबी निभाया , सहा खुद दुख पर किसी को भी इसका एहसास ना दिलाया। बेटी ने दो दो घरो को सजाया । बेटियों का सम्मा...
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