चलते-चलते आज मैंने भी फिर से वो गीत गुनगुनाए अपने ही बचपन के नादान किस्से याद कर मन ही मन मुस्कुराए आज बचपन के वो मजेदार दिन फिर से याद आए । काश! वो दिन फिर से लौट आए ऐसी उम्मीद हम सब लगाए पानी में वह कागज की कश्ती दौड़ाए खुले आसमान में बेखौफ पतंग उड़ाए एक छत से दूसरे छत ऐसे कितने छतो को हम छू आए बचपन के वो किस्से आज फिर याद आए । वो डांट से बचने के लिए दादा-दादी के पास चले जाना देर रात तक किस्से कहानियों का वो उनको सुनाना हर-पल याद आता है वो प्यार से माँ का लोरी गाना आज हो गया बचपन का हर किस्सा पुराना । उस पल बेखौफ जिंदगी का लुप्त उठाना बात-बात पर रूठना मनाना कभी डरना भूतों से कभी भूत बनकर दूसरों को डराना शोर-गुल के साथ खेलना नाचना गाना सब कुछ मानो खुला बाजार था बचपन का हर किस्सा यादगार था हर लम्हा बड़ा मजेदार था । दिल में ख्वाहिशों का लगा अंबार था हर दुकान में कुछ ना कुछ पसंद आ जाता मुझे हर बार था मेरी हर छोटी ख्वाहिश को पूरा करने में लगा मेरा पूरा परिवार था उस वक्त अपनों में कुछ अनूठा प्यार था...
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